आज रा हिंदुस्तान अख़बार म खबर छपी है कै लार ला पचास सालां म भारत म बोली जावण री साढ़े आठ सौ बोलियाँ (भाषावां) म सूं ढाई सौ बोलियाँ या भाषावां विलुप्त हुगी बां रों कोई नांव लेवणियो ही कोनी बच्यो. जो काम विदेशी आक्रांता री तलवारां नी कर सकी वो काम आजादी रै बाद आपां री चुन्योड़ी सरकारां रा संरक्षण में हुग्यो| जबकि आं आंचलिक भाषावां नै राष्ट्रीय संपदा मान नै सरकारां नै बचावण री कोशिश करणी चायजै ही|
ईं खबर सूं ऐ आंकड़ा पढ़ नै आपां नै भी चेत ज्याणो चाये क्यों कै आपारी मायड़ भाषा नै भी सरकारी मान्यता न मिलण सूं नई पीढ़ी रा जवान हिंदी अर अग्रेजी रे लारै लाग न मायड़ भाषा बोलण म गर्व महसूस नी कर रिया है और वे मायड़ भाषा सूं दूर हुता ज्या रह्या है| इण भांत भाषावां विलुप्त हुवण रो खतरा आपां री मायड़ भाषा माथै भी पुरो मंडरा रयो है|
आपां नै आपणी मायड़ भाषा बचवाण नै व इं रो विकास करण नै एक तरफ सरकार सूं मान्यता दिलावण री कोशिशां म जुटणो पड़ सी दूजी तरफ आपां नै आपां रा घरां में टाबरां नै मायड़ भाषा अपनाबा री सीख देणी पड़ेला व नई पीढ़ी ने समझाणो पड़ सी कै आपां री मायड़ भाषा म जो ताकत है वा दूजी भाषावां म नी है ईरों ओ एक उदाहरण ही काफी है कि- जद महाराणा प्रताप अकबर सूं लड़ता लड़ता थोड़ा सा विचलित हुग्या जद बीकानेर रा राजकुमार पृथ्वीराज री मायड़ भाषा म लिख्योड़ी एक कविता पढ़ नै बे प्रण कर लियो कै व जीवतां थकां कदे अकबर री अधीनता नी स्वीकार करेला|
आ ताकत आपणी मायड़ भाषा म ही है दूजी भाषावां म नी है| आज आपां साहित्य माथे भी नजर डालां तो जित्तो आपणो राजस्थानी भाषा रो साहित्य समृद्ध है उतो दूजी भाषावां रो नी है|
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Rajvi ji, aap rajasthan ke bal thakre baniye, ham apke saath hain.
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